इस मंदिर में मंदोदरी करती थीं शिव पूजा, यहीं पर रावण से हुई थी मुलाकात
मेरठ.सदर स्थित श्री बिल्वेश्वरनाथ शिव मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का विशेष केंद्र है। मान्यता है कि यहां मंदोदरी भगवान शिव की पूजा करती थीं। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने के लिए कहा था। बाबा की कृपा से इसी मंदिर में रावण से मंदोदरी की पहली मुलाकात हुई थी, जिसके बाद दोनों की शादी हुई।
मंदोदरी रोज सखियों के साथ आती थी पूजा करने
मंदिर के पुजारी आचार्य पंडित हरीश चंद्र जोशी बताते हैं कि त्रेता युग में दशानन रावण की पत्नी मंदोदरी अपनी सखियों के साथ यहां आती थीं। वह भगवान शिव की विधिवत पूजा अर्चना किया करती थीं। ऐसी मान्यता है कि उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने इसी मंदिर में उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने के लिए कहा था। भोलेनाथ की कृपा से यहीं पर रावण से उनका मिलन हुआ। उन्होंने कहा कि यहां सच्चे मन से जो भी पूजा करता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
सिद्ध पीठ है मंदिर का शिवलिंग
मंदिर के पुजारी आचार्य पंडित हरीश चंद्र जोशी ने बताया कि मंदिर में जो शिवलिंग है, वह सिद्ध पीठ है। यहां पूजा, जलाभिषेक और रूद्राभिषेक करने से फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा यहां सिंदूरी श्री गणेश, माता पार्वती और सिद्धपीठ श्री भैरव जी भी विराजमान हैं।
मंदिर के पुजारी आचार्य पंडित हरीश चंद्र जोशी ने बताया कि मंदिर में जो शिवलिंग है, वह सिद्ध पीठ है। यहां पूजा, जलाभिषेक और रूद्राभिषेक करने से फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा यहां सिंदूरी श्री गणेश, माता पार्वती और सिद्धपीठ श्री भैरव जी भी विराजमान हैं।
पहले भैसाली मैदान पर था सती सरोवर
बताया जाता है कि आज जहां भैसाली मैदान है, वहां राजा मय के समय में सती सरोवर था। इसमें स्नान करने के बाद वह नित्य सरोवर के पश्चिम तट पर स्थित बिल्वेश्वरनाथ महादेव मंदिर में पूर्जा-अर्चना के लिए आती थी।
अद्भुत है मंदिर की छटा
मंदिर की अंदर से छटा अद्भुत है। वहां स्थित गुंबद भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर की खासियत यही है कि इसके द्वार बेहद छोटे हैं। उसमें अंदर प्रवेश करने के लिए झुककर जाना पड़ता है। इसके अंदर पीतल के बड़े-बडे घंटे टंगे हैं। इनकी ध्वनि दूर तक सुनाई देती है।
बताया जाता है कि आज जहां भैसाली मैदान है, वहां राजा मय के समय में सती सरोवर था। इसमें स्नान करने के बाद वह नित्य सरोवर के पश्चिम तट पर स्थित बिल्वेश्वरनाथ महादेव मंदिर में पूर्जा-अर्चना के लिए आती थी।
अद्भुत है मंदिर की छटा
मंदिर की अंदर से छटा अद्भुत है। वहां स्थित गुंबद भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर की खासियत यही है कि इसके द्वार बेहद छोटे हैं। उसमें अंदर प्रवेश करने के लिए झुककर जाना पड़ता है। इसके अंदर पीतल के बड़े-बडे घंटे टंगे हैं। इनकी ध्वनि दूर तक सुनाई देती है।
लाखों कांवड़िए चढ़ाते हैं जल
शिवरात्रि और सावन में लाखों कांवड़िए मंदिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। सोमवार के दिन यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। मनोकामना पूरी होने पर वे शिव-पार्वती को वस्त्र चढ़ाने के साथ-साथ भंडारे का आयोजन करते हैं। सावन के दिनों में यहां भक्तजन विशेष रूप से जलाभिषेक करते हैं। इस पूरे महीने रुद्राभिषेक के लिए भी लोगों की भारी भीड़ जुटती है।
मुख्य द्वार बद्रीनाथ मंदिर के जैसा
श्री बिल्वेश्वरनाथ महादेव मंदिर की एक खासियत ये भी है कि इसका मुख्य द्वार उत्तराखंड के बद्रीनाथ मंदिर के जैसा है। वहां के पुजारी बताते हैं कि भगवान शिव के दर्शन के लिए यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। इसके अंदर की बनावट आम मंदिरों से बिलकुल अलग है।
शिवरात्रि और सावन में लाखों कांवड़िए मंदिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। सोमवार के दिन यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। मनोकामना पूरी होने पर वे शिव-पार्वती को वस्त्र चढ़ाने के साथ-साथ भंडारे का आयोजन करते हैं। सावन के दिनों में यहां भक्तजन विशेष रूप से जलाभिषेक करते हैं। इस पूरे महीने रुद्राभिषेक के लिए भी लोगों की भारी भीड़ जुटती है।
मुख्य द्वार बद्रीनाथ मंदिर के जैसा
श्री बिल्वेश्वरनाथ महादेव मंदिर की एक खासियत ये भी है कि इसका मुख्य द्वार उत्तराखंड के बद्रीनाथ मंदिर के जैसा है। वहां के पुजारी बताते हैं कि भगवान शिव के दर्शन के लिए यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। इसके अंदर की बनावट आम मंदिरों से बिलकुल अलग है।
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